एक श्रद्धांजलि : जिन्होंने मुझे जन्म दिया

एक श्रद्धांजलि : जिन्होंने मुझे जन्म दिया
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छोटी सी बात : मेरा मत

जकल सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर प्रसिद्ध हस्तियों की आलोचनायें करना और लाइक्स पाने की चाहत में उनपर आरोप लगाना एक रिवाज सा बन गया है।
  पर क्या कभी किसी ने सोचा है कि भ्रष्टाचार या बुराई कहाँ नहीं है ? क्या हमारे खुद के दामन पूरीतरह से साफ़-सुथरे हैं ? फर्क सिर्फ़ इतना है कि हम जैसे आम इन्सान जो बुराइयाँ करते हैं उनपर लम्बी बहस नहीं छिड़ती। हरकोई अपनों का साथ देकर सामनेवाले को दोषी ठहरा देता है, भले ही गलती किसी की भी रही हो।
ऐसे कितने ही अनगिनत लोग हमारे इर्द-गिर्द ही मौज़ूद मिल जाते हैं, जो दूसरों के हक़ पर ज़बरदस्ती अधिकार करके मान सम्मान की ज़िन्दगी जी रहे हैं, ऊपर से उस इन्सान पर अपना अहसान भी जताते हैं जिसका हक़ मार रखा है।
   अगर बुरायी ख़त्म करनी ही है तो सबसे पहले अपने आसपास और स्वयं से इसकी शुरुआत करें। जिसदिन देश का हर सच्चा नागरिक ऐसी शपथ ले लेगा, उसदिन किसी आन्दोलन की ज़रुरत नहीं पड़ेगी।
मगर ये तो सबसे मुश्किल काम लगता है। क्योंकि, न ही हमें खुद में कभी कोई खामी नज़र आयी है और न ही हम भविष्य में ऐसी कोई आदत डालने वाले हैं। हम तो केवल और केवल दूसरों में ही बुराइयाँ तलाशेंगे। जो सुकून इस कार्य को करके मिलता है, वह कहीं और मिलता है क्या ?
   सोचने की बात यह है कि जो लोग दूसरों की आलोचनायें करते हैं क्या उन्होंने कभी यह सोचा है कि उनके करीबी सम्बंधी, यार-दोस्त और आस-पास के लोग उनके प्रति मन में कैसी भावनाएँ रखते हैं ?
   याद रखें, हर बुरे इन्सान में भी एक सद्-गुण अवश्य होता है, उसके उस सद्-गुण को महत्व दें, न कि बुराइयों को। हम जैसे लोग जो नेक और प्रशंसनीय व्यक्तित्व को भी नीचा गिराने से बाज नहीं आते, उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि ऐसा करके हमें मुँह पर भले ही जितनी सराहना और उचित प्रतिक्रिया मिल जाये, पीठ पीछे निन्दा ही हासिल होती है। कहीं न कहीं यह कर्म निन्दायें करने वालों को समाज में निराशावादी विचारधारा से प्रेरित एक असफल व्यक्ति के रूप में भी स्थापित करता है।
   आचार्य विनोबा भावे ने सत्य ही कहा है, "निन्दित वह व्यक्ति नहीं होता जिसकी निन्दा की जाये बल्कि वह होता है जो इस कर्म को करनेवाला होता है।"
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